माता ब्रह्मचारिणी की कथा, महत्व और आराधना
नवरात्र के दूसरे दिन माता ब्रह्मचारिणी की आराधना की जाती है। नवरात्र में मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करने से माता से तपस्या का वरदान मिलता है। यह संयम और वैराग्य की देवी हैं।
मां ब्रह्मचारिणी ने राजा हिमालय के घर जन्म लिया था। देवऋषि नारद जी की सलाह पर उन्होंने कठोर तप किया, ताकि वह भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त कर सकें। कठोर तप की वजह से उनका नाम ब्रह्मचारिणी या तपश्चारिणी पड़ा।
भगवान शिव की आराधना के दौरान उन्होंने हजार सालों तक केवल फल-फूल खाईं और सौ वर्ष तक साग खाकर जीवित रहीं। कठोर तप से उनका शरीर कमजोर हो गया। मां ब्रह्मचारिणी का तप देखकर सभी देवता, ऋषि-मुनि अत्यंत प्रभावित हुए और उन्होंने वरदान दिया कि देवी आपके जैसा तप कोई नहीं कर सकता है। भगवान शिव आपको पति स्वरूप में प्राप्त होंगे और ऐसा ही हुआ।
देवी मां ब्रह्मचारिणी को गुड़हल और कमल का फूल पसंद है। इसलिए उनकी पूजा में इन्हीं फूलों को देवी मां के चरणों में अर्पित किया जाता है। मां ब्रह्मचारिणी को मीठे में चीनी और मिश्री काफी पसंद है, इसलिए मां को भोग में चीनी, मिश्री और पंचामृत का भोग लगाना चाहिए।
मां ब्रह्मचारिणी को दूध और दूध से बने व्यंजन अति प्रिय हैं। इसलिए मां ब्रह्मचारिणी को दूध से बने व्यंजनों का भोग लगा सकते हैं। मान्यता है कि इस भोग से देवी ब्रह्मचारिणी प्रसन्न हो जाती हैं। कहते हैं कि मां ब्रह्मचारिणी व्रत के दिन इन्हीं चीजों का दान करने से लंबी आयु और सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
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